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उज्जैन के नागरिक की पाती…

उज्जैन के नागरिक की पाती…

 

*सत्ताधारी पार्टी अपने दमन की और अग्रसर है*

 

केंद्र से लेकर वार्ड तक एक ही पार्टी की सत्ता और शक्ति होने के बाद भी इसका उपयोग मात्र स्वार्थ सिद्धि और अराजकता के लिए किया जा रहा है।

 

कई अच्छे और वरिष्ठ लोग भाजपा से जुड़े है या समर्थक हैं, मैं स्वयं अब तक भाजपा का समर्थक हूं पर धीरे धीरे मेरे विचार पार्टी और पार्टी के नेताओं के प्रति बदलते जा रहें है।

 

इंदौर के नेता और उनके पुत्र द्वारा महाकाल मंदिर में की गई अनुशासनहीनता को पार्टी ने बहुत गंभीरता से लेना चाहिए। उनका पुत्र तो आदतन अपराधी की श्रेणी में आना चाहिए। भले ही वह नेता अपनी शक्ति और धन सम्पन्नता का उपयोग कर पार्टी में बने हुए हैं, अन्य नेताओं द्वारा कार्यवाही की मांग अवश्य होना चाहिए।

भाजपा भले ही इमरजेंसी को लेकर देश भर में एक विशेष आंदोलन छेड़ रही हो पर उज्जैन शहर में लोगों को घर में रहने के लिए बाध्य किया जा रहा है।

1. शहर भर में अव्यवस्थित ट्रैफिक, अनियंत्रित e रिक्शा तथा अन्य वाहनों की दादागिरी, उसपर संसद, विधायक, सरपंच, और अन्य उपनाम लिखे वाहनों द्वारा इतनी अव्यवस्था कर दी गई है शहर में वाहन चलाना तो दूर पैदल चलना तक मुश्किल कर दिया है। अभी ऊपर कॉसमॉस मॉल की बात हो रही थी। हर मंगलवार लगने वाले हाट इतना ज्यादा फैलता जा रहा है कि आसपास के सारे रहवासियों के लिए रास्ते बंद हो जाते हैं। किसी दिन किसी घर में कोई चिकित्सकीय आपातकालीन स्थिति बन गई तो अस्पताल पहुंचना तक मुश्किल होगा।

2. कुत्तों का आतंक, आए दिन कुत्तों के काटने की खबरें आ रही हैं पर नगर निगम धरातल पर कुछ नहीं कर रही, कुत्ते की औसत उम्र 12 से 15 वर्ष होती है। इस हिसाब से अगर निगम आज भी सही ढंग से कुत्तों की नसबंदी करे तो अगले 12 साल हमें इन कुत्तों से परेशान होना ही है। लेकिन इस पर कोई गंभीरता नहीं।

3. बच्चों के खेलने के अधिकतर उद्यानों में अतिक्रमण कर लिया गया है। उसपर सोने में सुहागा अटल उद्यान जैसे थोड़े ठीक ठाक उद्यान को भी नगर निगम ने शुल्क लगा कर इमरजेंसी घोषित कर दी है।

4. बच्चे सड़क पर तो अकेले निकल ही नहीं सकते, कुत्ते जानलेवा होते जा रहें हैं।

भाजपा के नेता और उनके समर्थकों को सोचना चाहिए कि उनके घरों में भी बच्चे होंगे, बुजुर्ग होंगे उनके बारे में सोचिए। कुछ तो कीजिए।

ऐसा भय का माहौल बना रखा है कि कोई कुछ करना तो दूर बोलने तक की हिम्मत नहीं कर पा रहा है।

 

नगर निगम से हर बात पर यह सुनने को मिलता है कि कोश की कमी है, अगर वाकई ऐसा है तो शहर भर में विभिन्न निर्माण कार्य जो जनता के किसी काम के नहीं है करवाकर धन की बर्बादी क्यों की जा रही है?

 

यह शहर रहने लायक नहीं छोड़ा जा रहा है।

 

वरिष्ठ जन तथा प्रबुद्ध जन विचार करें।

 

🎯 चेतन पेढ़नेकर उज्जैन

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